कहानियाँकोनापौराणिक कथाएं गाथा: श्री घुश्मेश्वर महादेव शिवाड़ राजस्थान by teenasharma August 13, 2023 written by teenasharma August 13, 2023 गाथा: श्री घुश्मेश्वर महादेव किशना ने उस शिला यानी ज्योतिर्लिंग पर आवेश में आकर कुल्हाड़ी से प्रहार कर दिया। कुल्हाड़ी से प्रहार करते ही शिवलिंग से डरावनी ध्वनि सुनाई दी। पढ़िए, गाथा: श्री घुश्मेश्वर महादेव महमूद गजनवी के आक्रमण के बाद शिवाड़ का घुश्मेश्वर महादेव मंदिर करीब एक सदी तक लोगों की नजर से ओझल रहा। भगवान भोलेनाथ के पुन: प्राकट्य की कथा भी इस पवित्र स्थान पर घटी अलौकिक घटना से जुड़ी है। इस घटना के सामने आने के बाद मंडावर के तत्कालीन शासक शिववीर सिंह चौहान ने यहां फिर से मंदिर बनवाकर फाल्गुन कृष्णा संवत 1179 को मंदिर के शिखर पर कलश चढ़वाया। इससे पहले विक्रम संवत 1177 यानी 1120 ईस्वी में यह रोचक घटना हुई। जब गाय ने किया भोलेनाथ का दुग्धाभिषेक- कहते हैं कि समीप के तारापुर गांव के किशना खाती की गाय खंडहर के बीच जंगल में तब्दील हो चुके इस इलाके में चरने आया करती थी। उसकी गाय स्वत: ही उस स्थान पर आकर अपना दूध विसर्जित करती थी जहां पर ज्योतिर्लिंग दबा हुआ था। रोज गाय को दूध विहीन घर आता देख एक दिन किशना कुल्हाड़ी लेकर गाय के पीछे-पीछे चला आया। यह जानने के लिए कि गाय का दूध कौन पी जाता है? गाय को स्वत: ही दूध विसर्जित करते देख विस्मित किशना को किसी अदृश्य शक्ति के शिला में मौजूद होने की आशंका हुई। http://kahanikakona.com/wp-content/uploads/2023/08/WhatsApp-Video-2023-08-13-at-19.41.01.mp4 जनश्रुति है कि किशना ने उस शिला यानी ज्योतिर्लिंग पर आवेश में आकर कुल्हाड़ी से प्रहार कर दिया। कुल्हाड़ी से प्रहार करते ही शिवलिंग से डरावनी ध्वनि सुनाई दी। भयभीत किशना वहां से भागा। कुछ ही कदम चला होगा कि आकाशवाणी हुई, ”किशना तूने हमारे ऊपर कुठाराघात किया है, जा तू पत्थर का हो जा।” पल भर में ही किशना पाषाण का हो वहीं खड़ा रह गया। यह सब कुछ हुआ तब तक सांझ हो गई। किशना की गाय रंभाती हुई टापुर पहुंची और उसकी पत्नी जानकी का पल्लू पकड़ खींचने लगी। गाय को अकेले आई देख अनिष्ट की आंशका से ग्रस्त जानकी ने ग्रामीणों को एकत्र किया। देवगिरी पर्वत की तलहटी पहुंची तो अपने पति को पत्थर का हुआ देख जानकी विलाप करने लगी। पुराने अभिलेखों से पता चला है कि तब टापुर विद्वानों की नगरी थी। ग्रामीणों के साथ वहां पंडित भी पहुंचे थे। किसी एक ने अपने बुजुर्गों से सुनी कथा के आधार पर बताया कि हो न हो गजनवी के आक्रमण से ध्वस्त हुआ मंदिर यहीं रहा हो। किशना हुआ पाषाण का – भगवान घुश्मेश्वर के कोप से ही किशना पाषाण का हुआ है। ऐसा पंडितों ने माना। समूचा वृत्तांत जानकर किशना की विलापरत पत्नी जानकी भी खुद का जीवन अंधकारमय जानकर उसी कुठार से अपना सिर भगवान शंकर को अर्पित करने के लिए उद्यत हुई जिससे किशना ने ज्योतिर्लिंग पर कुठाराघात किया था। गाथा: श्री घुश्मेश्वर महादेव तब रौद्र रूप में आए भोले भंडारी प्रसन्न हो गए और आकाशवाणी हुई ”जानकी, मैं तुम्हारी भक्ति से प्रसन्न हूं। वर मांगो।” जानकी ने प्रार्थना की। प्रभु, आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो मेरे पति को फिर से जीवित कर उनका अपराध माफ कर दें। थोड़े ही समय बाद लोगों ने देखा कि जिस स्थान पर किशना पाषाण का हुआ था वहां से ज्योतिर्लिंग की ओर चला आ रहा है। किशना की पत्नी जानकी आनंद विभोर हो गई तथा किशना से समूचा वृत्तांत व आकाशवाणी का जिक्र किया। किशना को अपने कृत्य पर काफी ग्लानि हुई। पश्चाताप करते हुए उसने भगवान घुश्मेश्वर से प्रार्थना की और प्रायश्चित स्वरूप से खुद पर कुठाराघात कर जीवन समाप्त करना चाहा। तब फिर आकाशवाणी हुई, ”किशना तुमने मुझ पर कुठाराघात तो किया है लेकिन अब तुम्हें क्षमा करता हूं। तुम अपनी इच्छानुसार वर मांगो।” …और यहीं रूक गए शिव- किशना ने भगवान भोलेनाथ से सदैव यहीं निवास करने का वर मांगा। ‘एवमस्तु’ कहकर शिव ने साथ ही यह भी कहा कि यहां वे दोनों अपने नाम से दो शिलाएं भी लगा जाएं। भगवान ने किशना-जानकी को यह भी वर दिया कि उनके दर्शनार्थ आने वाले की यात्रा इन शिलाओं की परिक्रमा करने पर ही पूरी होगी। कहते हैं कि तब खुद किशना ने ही वहां से प्राचीन मंदिर के खण्डित प्रस्तर खंड उठाए और उसी स्थान पर उन प्रस्तरों को स्थापित कर दिया जहां किशना पाषाण का हुआ था। प्रस्तर खण्डों में एक छोटा है जो किशना दंपती के प्रतीक हैंं। किशना तारापुर स्थित अपने घर लौट गया और रात्रि विश्राम करने के बाद सुबह अपनी गाय को घुश्मेश्वर महादेव को अर्पित कर शिवालय सरोवर में स्नान कर ज्योतिर्लिंग की परिक्रमा की और काशी के लिए सपत्नीक प्रस्थान कर गया। http://kahanikakona.com/wp-content/uploads/2023/08/WhatsApp-Video-2023-08-13-at-19.42.02-2.mp4 ज्योतिर्लिंग के गर्भगृह से मुश्किल से 200 मीटर दूर आज भी ये प्रस्तर खण्ड लगे हैं। ये प्रस्तर खण्ड प्राचीन शिलाओं के हैं जो हरा-नीलापन लिए हैं। हालांकि पुनर्निर्माण के दौर में इन प्रस्तर खण्डों पर अब मार्बल का आवरण लगा दिया गया है। आज भी दर्शनार्थी इन स्तंभों की परिक्रमा करते हैं। स्थानीय बोलचाल में इन प्रस्तर खण्डों को खाती-खातिन कहते हैं। (इस घटना का जिक्र शिवाड़ निवासी स्व.पं.गंगाबिशन क्षोत्रिय की हस्तलिखित पुस्तक में किया गया है।) हरियाली अमावस्या ऐसे थे ‘संतूर के शिव’ गाथा: श्री घुश्मेश्वर महादेवघुश्मेश्वर महादेवभोलेनाथ का दुग्धाभिषेकशिवाड़ घुश्मेश्वर महादेव 0 comment 0 FacebookTwitterPinterestEmail teenasharma previous post राष्ट्रीय प्रसारण दिवस आज next post चंद्रयान-3 Related Posts छत्तीसगढ़ का भांचा राम August 29, 2024 जन्माष्टमी पर बन रहे द्वापर जैसे चार संयोग August 24, 2024 विनेश फोगाट ओलंपिक में अयोग्य घोषित August 7, 2024 जगन्नाथ मंदिर में ‘चंदन यात्रा’ उत्सव May 12, 2024 वैदेही माध्यमिक विद्यालय May 10, 2024 Basant Panchami बसंत पंचमी February 14, 2024 राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा January 29, 2024 राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा January 22, 2024 राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा January 21, 2024 राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा January 10, 2024 Leave a Comment Cancel Reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.