क्या कुछ नहीं था सुशांत सिंह राजपूत के पास। दौलत...शोहरत और स्टारडम...। एक इंसान की पूरी उम्र लग जाती है इन सभी चीज़ों को हासिल करने में। फिर क्या वज़ह बन जाती है जब ज़िंदगी को यूं ही अलविदा कह दिया जाता है। सुशांत जैसे हंसमुख अभिनेता का सुसाइड कर लेना अपने पीछे कई अनगिनत सवाल छोड़ गया है। आख़िर गमों का कौन—सा पहाड़ था जिसके नीचे इतनी सुंदर ज़िंदगी दबकर रह गई..।
एक सितारा जो आम व्यक्ति के दिलों में राज करता है..जिसे आदर्श मानकर कई युवा अपने जीवन को जीते हैं। यदि वो ही ज़िंदगी की जंग में जब ख़ुद से हार जाते हैं तब बहुत बुरा लगता है। फिल्मी परदों पर जिस किरदार के रुप में ये अभिनेता अपने डायलॉग से आदर्श स्थापित करते हैं जब वे ही इन आदर्शो पर असल ज़िंदगी में खरे नज़र नहीं आते हैं तब सामान्य व्यक्ति के लिए यह बेहद सोचने वाली बात बन जाती है। मध्यम वर्गीय परिवार से आने वाले सुशांत का मरना युवाओं के बीच एक अच्छा संदेश देकर नहीं जाता है। सुशांत एक ऐसे कलाकार बनने की दिशा में थे जिससे आज का नौजवां हौंसला पाता था।
लेकिन हमें ये भी समझना होगा कि आख़िर वो कौन—सी परिस्थितियां रही होगी जिसे वे अपनी इतनी बड़ी सक्षमता होने के बाद भी हैंडल नहीं कर सके...ऐसी कौन—सी वज़ह थी जिसने उनके कदमों को मौत की ओर बढ़ाया। रह रहकर ये सवाल आते हैं।
उनकी सुसाइड की प्राथमिक वज़ह में पिछले छह महीने से उनका डिप्रेशन में होना सामने आया है। हमें ये भी समझना होगा कि सभी व्यक्ति का 'इमोशनल लेवल' अलग—अलग होता हैं। एक सामान्य निम्न और मध्यम तपके का व्यक्ति न जानें कितनी ही परेशानियों से रोज़ाना और हर पल ही जूझ रहा होता है। किसी के पास रहने को घर नहीं...किसी के पास खाने को रोटी नहीं...कोई अपने बच्चे को पढ़ा नहीं सकता...कोई गंभीर और असाध्य बीमारी से लड़ रहा हैं...किसी के पास नौकरी नहीं...किसी को किसी अपने ने छोड़ दिया तो किसी से कोई हमेशा के लिए बिछड़ गया...। ऐसे ढेरों दारुण दु:ख है जिसे बयां नहीं किया जा सकता है। फिर क्यूं आम व्यक्ति सुसाइड का रास्ता नहीं अपनाता...। क्यूं वो मरते दम तक ज़िंदगी के उतार—चढ़ावों पर ख़ुद को खरा रखने की जद्दोेज़हद में डटा रहता हैं...। यदि ये आम व्यक्ति भी आर्थिक, मानसिक, शारीरिक और सामाजिक दबावों से मरने लगा तो सुसाइड का ग्राफ तो कॉमन हो जाएगा। लेकिन नहीं...ये आम व्यक्ति असल ज़िंदगी में असल हीरों होते हैं जो हर तरह के संघर्षों में रहकर जी रहे है। सबसे बड़ी बात है कि इनके सुख और दु:ख की वज़ह घर—परिवार और दोस्तों के बीच साझा होती है। इसीलिए ये आसानी से जीवन की चुनौतियों से निपट रहे होते है।
लेकिन वर्चुअल दुनिया में जिस तरह से एकाकीपन शामिल हो रहा हैं वो भी एक बड़ा सवाल है। लोग अपनों से कटकर सोशल मीडिया की दुनिया में कनेक्टीविटी तो बढ़ा रहे हैं लेकिन अपनेपन से दूर हो रहे हैं। जब हमें इस अपनेपन की सबसे ज्य़ादा ज़रुरत होती हैं तब हमारे अपने और दिल के पास रहने वाले ही होते हैं जो हमें टूटने नहीं देते, हारने नहीं देते हैं...।
सुशांत जैसा मुस्कुराता हुआ चेहरा शायद इसी अपनेपन से दूर था। जिस वक़्त इस अभिनेता को इसकी सबसे ज़्यादा ज़रुरत थी शायद तभी वे उससे दूर थे। अभी ये भी बातें हो रही हैं कि सुशांत को अपनी बात, अपनी परेशानी किसी से शेयर करनी चाहिए थी।
ज़रा सोचकर देखें..। क्या वाक़ई ये इतना आसान है..। क्या हम अपनी उन परेशानियों को या दिल के भीतर चल रही उस उथल—पुथल को लोगों से, रिश्तेदारों से, दोस्तों और परिवार के बीच शेयर कर पाते हैं जिसे हम छुपाना चाहते है। नहीं...क्यूंकि हमारे भीतर समानांतर एक सवाल भी चल रहा होता है कि कहीं मेरी परेशानी सुनकर लोग मेरा मज़ाक ना उड़ाए..बेइज्ज़ती ना कर बैठें। एक सामान्य व्यक्ति भी अपनी बातें आसानी से किसी से शेयर नहीं कर पाता हैं तो फिर ये अभिनेता तो उस शिखर पर होते हैं जहां पर गॉशिप होने से ही इनका करियर बनता और बिगड़ता है। ऐसे में ये ख़ुद के भीतर आए तुफान को समाने की कोशिश करते रहते है। ये बनावटी दुनिया में जी रहे होते हैं...जहां पर सिर्फ लाइट...कैमरा और एक्शन है..। यहां पर इमोशन की ज़गह नहीं...। जो खुद को बैलेंस कर लें वो सर्वाइव कर जाता है और जो नहीं वो हमेशा के लिए टूट जाता है।
फ़िल्मी सितारों का यूं ही टूटकर बिखर जाना किसी भी अच्छी और सफल कहानी का अंत नहीं हो सकता है। सुशांत की अदाकारी का सूरज अभी अपने हुनर की किरणें और भी बिखेरता। लेकिन अब सिर्फ अनंत कारवां ही उनके पीछे शेष रह जाएगा। ये टीस हमेशा ही रहेगी..आख़िर क्यों... 'सुशांत'..आख़िर क्यों...?