प्रासंगिकरंगमंच ‘ऑनलाइन प्रोडक्शन’ थिएटर की हत्या…. by Teena Sharma Madhvi March 23, 2021 written by Teena Sharma Madhvi March 23, 2021 विश्व ‘रंगमंच दिवस’ पर विशेष— ‘कहानी का कोना’ में ‘रंगमंच—सप्ताह’ के दूसरे दिन आज आप पढेंगे वरिष्ठ रंगकर्मी व निर्देशक साबिर खान को। ————————————— रंगमंच का अर्थ हैं ‘अभिनेता, स्थान और दर्शक’। अगर किसी भी नाटक में इन तीनों में से एक भी तत्व नहीं हैं तब वो ‘थिएटर’ नहीं हो सकता। वर्तमान में चल रहे ‘ऑनलाइन प्रोडक्शन’ तो सीधे—सीधे थिएटर की हत्या जैसा हैं। मैं ‘डिजिटल थिएटर’ को नहीं मानता। ये कहना हैं वरिष्ठ रंगकर्मी व निर्देशक साबिर खान का। वे कहते हैं कि थिएटर तो अभिनेता, स्थान और दर्शक इन्हीं तीन तत्वों से पूरा होता हैं। ऐसे में इनके बिना थिएटर की कल्पना तक नहीं की जा सकती। ‘डिजिटल थिएटर’ को रंगमंच का विकल्प मानने से इंकार करते हुए साबिर खान कहते हैं, भले ही आज ‘डिजिटल थिएटर’ होने लगे हो। लेकिन इसमें वो अहसास वो बात नहीं। ‘कोरोनाकाल’ एक परिस्थिति हैं जिसमें सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का अलग—अलग रुपों में उपयोग किया जा रहा हैं। लेकिन सोशल मीडिया के किसी भी प्लेटफॉर्म पर थिएटर की वास्तविक अनुभूति नहीं की जा सकती। यदि इस दौरान कोई प्ले ऑनलाइन प्रस्तुत हुए भी हैं या हो रहे हैं तब उन्हें ‘टेली प्ले’ कहना ही उपयुक्त होगा। इसकी एक वजह ‘कैमरा’ भी हैं जो इसे शूट कर रहा हैं। जबकि थिएटर में कैमरा नहीं होता। यहां तो ‘लाइट्स’ का रोल बहुत ख़ास होता हैं। जिसे अभिनेता के संवाद और भाव के साथ इस्तेमाल किया जाता हैं। जिस पर दर्शकों की प्रतिक्रिया हाथों—हाथ मिलती हैं। तालियों की गड़गड़ाहट ही थिएटर को ज़िंदा रखे हुए हैं। ये तालियों की गूंज ही हैं जो थिएटर को कई रंगों के अहसासों से भर देती हैं। यदि ‘ऑनलाइन प्रोडक्शन’ को थिएटर माना जाने लगा हैं या मान रहे हैं तो ये वास्तविकता में थिएटर की हत्या हैं। थिएटर कभी मर नहीं सकता। हां समय के साथ—साथ उसके स्वरुपों में बदलाव हो सकता हैं। लेकिन उसकी मूल आत्मा जिसमें ‘अभिनेता—स्थान व दर्शक’ शामिल हैं, वो कभी नहीं बदल सकती। पिछले 46 वर्षो से साबिर खान रंगमंच की दुनिया में हैं। वे रंगमंच से जुड़े अपने अनुभवों को साझा करते हुए बोले कि, वर्ष 1975 में जब उन्होंने पहली बार थिएटर करना शुरु किया था तब कुछ संस्थाओं के हाथों में ही ये काम हुआ करता था। संस्थाएं चाहती थी तभी प्ले होते थे। यूं कहें कि थिएटर करने वालों के हाथ में ‘थिएटर’ नहीं था। ऐसे में कई अच्छे कलाकार इनके प्रोडक्शन पर ही निर्भर थे। कुछ दिनों बाद महसूस होने लगा कि मुझे एक्टिंग छोड़कर निर्देशन में जाना चाहिए और मैंने निर्देशन का रास्ता चुना। वर्ष 1980 से ही मैं नाटकों का निर्देशन कर रहा हूं। लेकिन निर्देशन में सबसे बड़ी ज़रुरत है अच्छा पढ़ने की। मैंने भी अच्छे साहित्य, समाज व मनोविज्ञान को पढ़ना शुरु किया और इसके बाद ही निर्देशन को पूर्ण रुप से अपनाया। इस दौरान ये कोफ़्त होने लगी थी कि संस्थाएं क्यूं थिएटर करवाएं। तब लगा कि थिएटर को संस्थाओं के ‘मकड़जाल’ से निकालने के लिए ग्रुप्स बनाने की ज़रुरत हैं। तब धीरे—धीरे अपने ग्रुप्स तैयार किए और नाटक करवाएं। ये सिलसिला जो उस वक़्त शुरु हुआ था वो अब भी चल रहा हैं। आज ख़ुशी होती हैं कि जयपुर का ‘रंगमंच’ पूर्णरुप से थिएटर करने वालों के हाथों में हैं। क्या ‘गुटबाजी’ से रंगमंच की दुनिया प्रभावित हो रही हैं, तब साबिर खान कहते हैं कि, ‘गुटबाजी’ राजनीति की ही देन हैं। असल में ये ‘सर्वाइवल’ की लड़ाई हैं। कोई भी प्रोडक्शन करने के लिए पैसा चाहिए। लेकिन सवाल ये है कि वो आएगा कहां से..? सरकार की ओर से जो ग्रांट मिलती हैं असल में वो उन्हीं को मिल पाती हैं जिसकी ‘सांठगांठ’ हो। ऐसे में कई बार इस ग्रांट का दुरुपयोग भी हो रहा हैं। वहीं, थिएटर करने वाले और इस दुनिया में आने की ख़्वाहिश रखने वाले युवाओं के लिए साबिर खान कहते हैं कि, ख़ुद युवाओं को भी थिएटर के लिए पूर्ण ईमानदारी रखनी होगी। अधिकतर युवा आधा—अधूरा सीखकर मुंबई जाना चाहते हैं। मैं बिल्कुल भी इस पक्ष में नहीं हूं। पहले पूरा सीखो फिर सिनेमा या टेलीविज़न में जाओ…। साबिर कहते हैं कि अच्छे प्रोडक्शन की भी बेहद ज़रुरत हैं। इससे युवाओं में थिएटर के प्रति आकर्षण पैदा होगा और वे सशक्त अभिनय करने के लिए तैयार होंगे। इसी ध्येय के साथ साबिर खान अब भी अपने ग्रुप्स के साथ कई नाटकों की तैयारी और वर्कशॉप कर रहे हैं। उन्हें ‘लाइक्स’ और ‘व्यूज़’ नहीं बल्कि दर्शकों का इंतज़ार हमेशा रहेगा जो थिएटर को वास्तविक रुप में पसंद करते हैं। ‘नाटक’ जारी हैं… 4 comments 0 FacebookTwitterPinterestEmail Teena Sharma Madhvi previous post ‘नाटक’ जारी है… next post जी ‘हुजूरी’ का रंगमंच….. Related Posts प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक… May 13, 2022 ‘मर्दो’ का नहीं ‘वीरों’ का है ये प्रदेश... March 10, 2022 रानी लक्ष्मीबाई जयंती—- November 18, 2021 ‘पारंपरिक खेल’ क्यों नहीं…? November 13, 2021 ‘विश्व हृदय दिवस’ September 29, 2021 ‘मुंशी प्रेमचंद’—जन्मदिन विशेष July 31, 2021 ‘रबर—पेंसिल’ …. July 10, 2021 बजता रहे ‘भोंपू’…. June 26, 2021 ‘ओलंपिक ‘ — कितना सही ….? June 23, 2021 ‘फटी’ हुई ‘जेब’…. June 20, 2021 4 comments Dilkhush Bairagi March 24, 2021 - 1:27 am Very nice Reply Teena Sharma 'Madhvi' March 24, 2021 - 7:41 am Thankyou Reply ashks1987 March 25, 2021 - 6:42 am shandar Reply Teena Sharma 'Madhvi' March 25, 2021 - 6:03 pm जी धन्यवाद। Reply Leave a Comment Cancel Reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.