कहानियाँ ‘कांपती’ बेबसी..भाग—2 by Teena Sharma Madhvi September 23, 2021 written by Teena Sharma Madhvi September 23, 2021 ‘ऐ मेरी बीनू उठ ना…।’ लेकिन बीनू कोई जवाब न देती…। देखते ही देखते बीनू के आसपास भीड़ ज़मा हो गई। तभी वहां मौजूद लोगों में किसी ने कहा, ‘अरे, इसे फोरन अस्पताल ले जाओ…’तो कोई कहता ‘अरे, कोई इसे पानी तो पिलाओ…।’ बीनू को ऐसे देख कमला का जी गले तक भर आया। आंखों में आंसू लिए वह चारों तरफ लोगों को देखती और फिर अपनी बच्ची को छाती से लगाए फूट—फूटकर रोती। कभी उसके माथे को चूमती तो कभी जोर—जोर से चीखती …। लेकिन बीनू कोई हरकत नहीं करती…। तभी कमला के गांव का ही गुब्बारे बेचने वाला उसकी मदद के लिए दौड़ा…उसने अपने रिक्शे में कमला, बीनू और उसकी छोटी बेटी को बैठाया और उन्हें लेकर सीधे नजदीकी अस्पताल पहुंचा। पीछे से कमला के खिलौने की रखवाली का ज़िम्मा गुब्बारे बेचने वाले की पत्नी ने संभाला। अस्पताल पहुंचने पर डॉक्टर ने बीनू का चेकअप किया, और बताया कि बीनू के सिर में नीचे गिरने से गहरी चोट लगी है, जिससे उसके सिर की नस फट गई है…। अब वह कभी नहीं उठेगी…। ये सुनते ही कमला फफक—फफक कर रोनी लगी। इसी एक क्षण में उसकी पूरी दुनिया ही उजड़ गई…। कुछ देर पहले तक जिन खुशियों को वह अपने आंचल में भर रही थी वो पल भर में ही बिखर गई…। वह स्ट्रेचर पर पड़ी बीनू की लाश को झंझोड़ती और जोर—जोर से चीखती, चिल्लाती…। “मेरी बीनू उठ जा रे…मुझे छोड़कर यूं मत जा…मेरे जीने का सहारा है री तू…उठ जा रे बीनू…मेरी बच्ची उठ जा…देख तेरी छोटी तुझे बुला रही है…अब कौन इसे झुंझुने से खिलाएगा…मेरी लाडो उठ जा री…तेरे बाबा हमारी राह तक रहे हैं…उन्हें क्या जवाब दूंगी मैं…।” गुब्बारे वाला उसे बहुत ढांढस बंधाता लेकिन एक मां जिसकी मासूम बच्ची ने हंसते—खेलते हुए पल भर में ही दम तोड़ दिया, वो खुद की भावनाओं पर कैसे नियंत्रण रखे इस वक़्त। कमला अपनी बीनू को छाती से कसकर लगाए हुए हैं…। दुनिया का कोई मल्हम नहीं जो आज और इस वक़्त इस मां के कलेजे का घाव भर सके। डॉक्टर बार—बार कमला को समझाता…। कमला की छोटी बेटी भी अपनी मां को रोता हुआ देख अपनी नन्हीं—नन्हीं हथेलियों से उसके आंसू पोंछने की मासूम कोशिशें करती, कमला रोते—रोते उसे भी चुप कराती जाती हैं। इस दु:ख के क्षण में उसे अपने पति का भी ख़्याल आता हैं, जो टीबी की बीमारी से जूझ रहा हैं…। मेले से पैसा न कमाया तो उसका इलाज भी कैसे होगा…। भीतर ही भीतर एक अंतद्वंद के साथ कमला हिम्मत जुटाती है और खुद को संभालती है। सांझ ढलने को थी। पूरी रात वह अपनी मरी हुई बेटी को कहां रखती। इसलिए उसने बीनू को अस्पताल की मोर्चरी में ही रखने का फैसला लिया और छोटी बेटी को गोदी में उठाए ‘कठोर हृदय’ के साथ फिर से मेले में अपने खिलौनों के पास आकर बैठ गई। ‘उसकी सूजी हुई आंखें…कपकपाते हाथ…और छाती में धड़क रहा बेबस कलेजा…कौन देख पाता इस भीड़ में…। इस मजबूर मां की बेबसी पर आज शायद आसमान भी रो पड़े…। एक कोमल हृदय की मां कैसे अपने कलेजे के टुकड़े के मर जाने के बाद भी पत्थर दिल के साथ लोगों को खिलौने बेच रही थी। जबकि उसका खुद का सबसे प्यारा खिलौना आज हमेशा के लिए टूट गया है…। एक ही पल में कमला भीड़ के बीचों—बीच अकेली हो गई थी…। इस वक़्त उस पर जो गुज़र रही थी वो या तो खुद जान रही थी या फिर उसका ईश्वर…। कमला ने पूरी रात भूखे-प्यासे रो—रोकर गुज़ारी। उसे बेटी के मरने का बेहद दु:ख था। प्रकृति की इस क्रूर नीति ने उसे बुरी तरह से तोड़ दिया था। लेकिन उसके सामने डेढ़ साल की दूसरी बेटी और बीमार पति के इलाज की ज़िम्मेदारी भी खड़ी थी। फिर उधारी चुकाने की चिंता भी उसे खाए जा रही थी। जैसे—तैसे रात बीती…सुबह होते ही कमला गुब्बारे वाले के साथ अपनी छोटी बेटी को लिए अस्पताल पहुंची और अपनी बीनू के शव को मोर्चरी से लेकर उसे अपने कांधे पर उठाकर शमशान घाट पहुंची…। यूं तो जन्म से लेकर आज तक बीनू को अपनी गोदी में उठाने का भार कमला को कभी महसूस ही नहीं हुआ था। लेकिन आज अपने इस जिगर के टुकड़े को यूं उठाकर ले जाना उसकी जिंदगी का सबसे भारी बोझ महसूस हुआ…। दिल पर लगे इस बोझ को वो सारी उम्र भूला नहीं सकेगी…। वो अकेली ही आज फूट—फूटकर रोते हुए अपनी बेटी की चिता को अग्नि दे रही है। इस वक़्त उसे ढांढस बंधाने के लिए ना तो उसका पति पास हैं और ना ही अपना कोई। अग्नि देने के बाद कमला अपनी डेढ़ साल की मासूम बच्ची के साथ निढाल होकर बीनू की चिता के पास ही बैठ गई….। उसका कलेजा फटे जा रहा था…उसे बीनू का ही चेहरा दिखता..। कभी घर आंगन में खेलते हुए तो कभी चूल्हे के पास बैठे हुए…। वह अपनी परिस्थिति को कोसती…लेकिन बेबस कमला के आगे मजबूरी मुंह फाड़े खड़ी थी। बीनू की चिता की राख ठंडी नहीं हुई थी…और कर्ज़ चुकाने की मजबूरी कमला को फिर से मेले में ले आई। उसकी आंखों से आंसू बहते रहे लेकिन कलेजे को कट्ठा (मजबूत) कर वह तब तक खिलौने बेचती रही जब तक कि मेला ख़त्म नहीं हो गया…। ——————– यहां पढ़ें—— ‘कांपती’ बेबसी....भाग—1 0 comment 0 FacebookTwitterPinterestEmail Teena Sharma Madhvi previous post ‘कांपती’ बेबसी… next post ‘विश्व हृदय दिवस’ Related Posts समर्पण October 28, 2023 विंड चाइम्स September 18, 2023 रक्षाबंधन: दिल के रिश्ते ही हैं सच्चे रिश्ते August 30, 2023 गाथा: श्री घुश्मेश्वर महादेव August 13, 2023 अपनत्व April 12, 2023 प्यार के रंग March 13, 2023 बकाया आठ सौ रुपए March 1, 2023 एक-एक ख़त…बस February 20, 2023 प्रतीक्षा में पहला पत्र February 16, 2023 लघुकथा—सौंदर्य February 11, 2023 Leave a Comment Cancel Reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.