प्रासंगिक क्यूं बचें— ‘हिन्दी’ भाषा है हमारी… by Teena Sharma Madhvi January 10, 2021 written by Teena Sharma Madhvi January 10, 2021 बड़ा गंदा लगता हैं ये सुनकर जब लोग कहते हैं कि ‘क्यूं अच्छे भले काम की ‘हिंदी’ कर रहे हो’…’क्या किया तुने मेरी हिंदी करा दी’…’अबे क्यूं इज्ज़त की हिन्दी करने के पीछे पड़ा हुआ हैं…। बेहद शर्मशार कर देते हैं ये वाक्य। आज चूंकि ‘विश्व हिन्दी दिवस’ हैं। ऐसे में हिन्दी पर बात होना स्वाभाविक हैं। लेकिन सिर्फ ‘हिन्दी दिवस’ पर ही हिन्दी की बात हो ये बात ठीक नहीं लगती। हिन्दी को ‘हीन’ भावना से देखने वालों के लिए एक बार इस पर विचार करने की भी ज़रुरत हैं कि वे जिस भाषा में पले बड़े हैं। जिस भाषा संस्कृति में वे अब तक जीते आए हैं फिर क्यूं वे इसे कमतर मानते हुए बुरी नज़रों से देखते हैं। दूसरी भाषा का ज्ञान होना बेहद अच्छी बात हैं लेकिन दूसरी भाषा के फेर में अपनी मातृभाषा को भूला देना ठीक नहीं। ये सुनकर भी बड़ा बुरा लगता हैं कि कुछ लोग ये तक कहने से ज़रा भी नहीं हिचकिचाते कि, उनकी हिन्दी कमज़ोर हैं…। अब भला ये क्या बात हुई। ऐसा नहीं कि हिन्दी भाषा को एकदम हिन्दी में उच्चारित करके लिखा या बोला जाए। क्यूंकि ये भी पूरी तरह से संभव नहीं हैं। आम बोलचाल में हम पूरी तरह से शुद्ध हिन्दी भी नहीं बोलते हैं। एक वाक्य में कम से कम एक उर्दू शब्द भी शामिल होता ही हैं। लेकिन ये वाक्य फिर भी लोगों को समझ आता हैं। क्यूंकि हिन्दी—उर्दू का मिश्रण तो ‘मां—बेटी’ की तरह लगता हैं। ये बात फिर भी अलग हैं कि कई लोग उर्दू भाषा को भी एक विशेष धर्म की भाषा मानते हैं। ये ग़लत फ़हमी भी निकलनी ज़रुरी हैं। क्योंकि ये भाषा किसी की बंधक नहीं हैं। ये तो पूरी तरह से स्वतंत्र हैं। भाषाओं पर राजनीति करने वालों को भी इसे समझने की ज़रुरत हैं। ख़ैर, ये एक अलग विषय हैं जिस पर फिर कभी बात होगी। हिन्दी को समझने या बोलने के लिए उसका पूरा व्याकरण समझना ज़रुरी नहीं हैं। क्यूंकि हम जिस जगह जिस धरती पर जन्में हैं वहां पर इस भाषा की हमें उतनी जानकारी तो हैं ही। और इसी जानकारी के आधार पर हम ख़ुद को ‘हिन्दीभाषी’ भी कहते हैं। इसके बाद हिन्दी न समझने और न बोल पाने जैसी मजबूरी तो हमारी होगी नहीं। तब बेहतर यही लगता है कि हम इसकी गरिमा को बनाएं रखें। इसे न समझ पाने जैसे दिखावटी वाक्यों से भी बचें। क्योंकि अपने ही देश में जब लोग ये कहेंगे कि हिन्दी कमज़ोर हैं…। ये न सिर्फ हमारी मातृभाषा का अपमान होगा बल्कि, हमारी पहचान भी ख़राब होगी। क्यूंकि हम उसी देश के वासी हैं जहां हिन्दी बोली जाती हैं। नया साल हैं…नई उमंगें हैं…नई राहों पर चलने की हज़ारों ख़्वाहिशें हैं…ऐसे में यदि एक प्रण और साथ लेकर चलें कि हिन्दी को आत्मीयता के साथ ख़ुद भी अपनाएं और इसमें होने वाले कार्यकलापों को भी आगे प्रचारित करें। चूंकि यह हमारी अपनी भाषा हैं…इसीलिए इसके लिए फ़िक्रमंद होना भी लाज़िमी हैं। आम बोलचाल और लिखते समय इससे बचें नहीं बल्कि इसे अपनाएं…। क्योंकि कोई भी भाषा सिर्फ एक भाषा ही नहीं होती हैं बल्कि वो एक इंसान की पहचान और उसका अस्तित्व होती हैं। और ‘हिन्दी हमारी पहचान हैं’….। 1 comment 0 FacebookTwitterPinterestEmail Teena Sharma Madhvi previous post स्वदेशी खेल…राह मुश्किल next post फ़ौजी बाबा Related Posts पानी पानी रे October 30, 2023 रक्षाबंधन: दिल के रिश्ते ही हैं सच्चे रिश्ते August 30, 2023 रक्षाबंधन: बचपन का झगड़ा एक प्रेम August 30, 2023 नीरज चोपड़ा ने विश्व एथलेटिक्स चैंपियनशिप में जीता... August 28, 2023 राखी: रिश्ते का रिन्युअल August 25, 2023 राष्ट्रीय प्रसारण दिवस आज July 23, 2023 हरियाली अमावस्या July 17, 2023 पहली गुरु हमारी ‘मां’ July 4, 2023 प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक… May 13, 2022 ‘मर्दो’ का नहीं ‘वीरों’ का है ये प्रदेश... March 10, 2022 1 comment मंत्री शांति धारीवाल May 4, 2022 - 11:05 am […] क्यूं बचें— 'हिन्दी' भाषा है हमारी… […] Reply Leave a Comment Cancel Reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.