कहानियाँ खाली रह गया ‘खल्या’.. by Teena Sharma Madhvi August 30, 2020 written by Teena Sharma Madhvi August 30, 2020 हर रोज़ फ़रदू यही सोचता कि आज वो अपने खल्ये में कुछ पैसा तो बचाएगा ही। लेकिन रात को जब घर आता तो उसका खल्या खाली ही रह जाता। लेकिन वो उम्मीद नहीं छोड़ता…। फिर सुबह होते ही सब्ज़ियों के साथ चेहरे पर ताज़गी लिए पहुंच जाता चौबट्टा…। फ़रदू की व्यवहार कुशलता से न सिर्फ चौबट्टा में बैठने वाले लोग ख़ुश होते बल्कि उसके पास आने वाला हर व्यक्ति उसकी खुश मिज़ाजी का कायल था। तभी तो हर रोज़ बाकी लोगों से ज़्यादा उसकी सब्ज़ियां बिकती थी। यूं तो फ़रदू बड़ा ज़िंदादिल और मन मौजी था। किसी बात को दिल पर लगाकर रुआंसा नहीं होता। लेकिन कई बार वह अकेलापन ज़रुर महसूस करता। बीते तीन महीने से वह अपने खल्ये में आए पैसों को बचाने में लगा था। इसकी वजह थी नेकी। फ़रदू को नेकी से बहुत प्रेम था। वह सोचता था कि नेकी उसके जीवन में आएगी तो उसका भी अपना कहने वाला कोई होगा और उसका अकेलापन भी दूर हो जाएगा। लेकिन नेकी चाहती थी कि फ़रदू कुछ पैसा जमा करके ख़ुद का सब्जी का ठेला लगाए। नेकी को फ़रदू का चौबट्टे में नीम के पेड़ के नीचे बैठकर सब्जी बेचना पसंद नहीं था। लेकिन फ़रदू ठहरा सीधा सादा और मनमौजी। वह तो चौबट्टे में ज़मीन पर बैठकर सब्ज़ी बेचने में भी राज़ी था। लेकिन कहते हैं ना कि प्रेम का रोग सबसे बड़ा रोग हैं। जिसे लग जाए फिर आसानी से नहीं जाता। फ़रदू भी तो आख़िर प्रेम का ही मारा था। उसके मन में भी नेकी और उसके प्यार को पाने की उत्कंठा थी। इसीलिए वो नेकी को ना नहीं कह सका। बस इसी वक़्त से वह रोज़ सब्जी बेचने के बाद खल्ये में आए पैसों को लेकर चिंतित रहने लगा। रात को सोने से पहले वो खल्ये से सारा पैसा निकालकर टाट पर रखता और फिर एक—एक पैसा गिनता। लेकिन हर रोज़ इतना ही पैसा होता जिसमें चौबट्टे में बैठने का किराया और उसका घर खर्च निकल जाए। किसी दिन सब्ज़ी थोक में बिक जाती तो कुछ पैसा खल्ये में बच जाता। लेकिन ये पैसा तो नेकी को घुमाने—फिराने और कुछ पसंद की चीज़े दिलाने में ही खर्च हो जाता। वक़्त ऐसे ही आगे बढ़ रहा था और इसी के साथ फ़रदू की चिंता भी। छह महीने बीत चले थे लेकिन फ़रदू का खल्या खाली का खाली ही रहा। नेकी रोज़—रोज़ फ़रदू से पूछती रहती। तो बताओ फ़रदू कितना पैसा जोड़ लिया तुमने…। वो क्या जवाब देता। पुतला बनकर खड़ा हो जाता। नेकी कहती कि फ़रदू जब तक तुम ख़ुद का ठेला नहीं लगा लेते तब तक हमारी शादी नहीं हो सकेगी। इसलिए अब तुम्हीं जानो…तुम क्या करोगे…। फ़रदू बेचारा ये कहकर रह जाता कि हां..हां..तुम क्यूं चिंता करती हो…। एक दिन नेकी फ़रदू के पास चौबट्टे में हांफती हुई आई और उसके सामने खड़ी हो गई। नेकी की हालत देख फ़रदू भी घबरा गया। वो तुरंत अपनी बैठक से उठा और नेकी से बोला कि ऐसी क्या बात हैं जो तुम यूं हांफती हुई मेरी तरफ़ चली आई। नेकी ने लड़खड़ाते हुए शब्दों में कहा कि मेरे पिताजी ने मेरी शादी पक्की कर दी हैं। और वो लड़का अच्छा कमाता भी हैं। फ़रदू तुम ही बताओ अब मैं पिताजी से कैसे कहूं कि मैं चौबट्टे में ज़मीन पर बैठकर सब्जी बेचने वाले से प्रेम करती हूं। फ़रदू भी नेकी की बात से सहमत था। वो नेकी को अपनी जान से भी ज़्यादा प्यार करता था और उसे खोना नहीं चाहता था। उसने नेकी को कहा कि वो फ़िक्र ना करें। ज़ल्द ही वो कर्ज़ लेकर सब्जी का ठेला ले लेगा। फ़रदू की बात सुनकर नेकी तो चली गई लेेकिन वो शून्य हो चला था और वहीं खड़े—खड़े गहरी सोच में डूब गया। उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि अब वो क्या करे…। कहां जाए और किस तरह से पैसों का इंतज़ाम करें। तभी पीछे से उसके कांधे पर किसी ने हाथ रखा। फ़रदू चौंका और पलटकर देखा। ये तो कांता हैं जो चौबट्टे में ही फ़रदू की तरह सब्ज़ी बेचती हैं। फ़रदू की तरह इसका भी अपना कहने वाला कोई नहीं..। फ़रदू से कांता कहती हैं कि तुम चिंता मत करो…। मेरे पास कुछ पैसा जमा हैं जो तुम्हें ख़ुद का ठेला खरीदने में मदद करेगा। जब तुम्हारे पास पैसा आ जाए तब तुम मुझे ये लौटा देना। फ़रदू के लिए ये पल किसी सपने से कम नहीं था। उसे इस वक़्त पहली बार भावनात्मक सहारा महसूस हो रहा था। उसे ऐसा लग रहा था मानो कोई उसका अपना हैं जो उसकी फ़िक्र करता हैं। वह कांता से कहता है कि लेकिन तुम्हें कैसे पता कि मुझे पैसों की ज़रुरत हैं…और किसलिए मुझे पैसा चाहिए…? कांता उसे बताती हैं कि तुम नेकी से प्रेम करते हो और वो तुमसे ये मैं जानती हूं। लेकिन इस पूरे चौबट्टे में कोई नहीं जो तुम दोनों के प्रेम को समझ सके। मैं तुम्हें समझती हूं इसीलिए तुम्हारे मन को भी समझ गई कि तुम नेकी से शादी करना चाहते हो। कांता की बातें सुनकर फ़रदू अवाक् था। वह कांता को कहता हैं कि मैंने तो तुम्हें कभी ठीक से देखा भी नहीं और तुमने तो मेरे साथ—साथ मेरी परेशानी को भी भांप लिया। मैं उम्र भर तुम्हारा कर्ज़दार रहूंगा। कांता उसे कहती हैं अब देर मत करो मुझसे पैसा लेकर नेकी के पास पहुंचो और जल़्दी से उसे इस बात की ख़बर कर दो कि तुम्हारे पास ठेला खरदीने के लिए पैसा हैं। लेकिन ये मत बताना कि मैंने तुम्हें ये पैसे दिए हैं। फ़रदू कांता की बात मानकर नेकी के घर पहुंचता हैं। नेकी उसे देखकर ख़ुश हो जाती हैं। नेकी के पिताजी भी दोनों की शादी के लिए तैयार हो जाते हैं। फ़रदू अपनी शादी में चौबट्टे के सभी साथियों को बुलाता हैं। कांता भी उसकी शादी में पहुंचती हैं। फ़रदू उसे देखकर बेहद ख़ुश होता हैं। और मन ही मन उसे बहुत दुआ देता हैं। वह सोचता हैं कि कांता सही वक़्त पर पैसा नहीं देती तो आज ये खुशी के पल उसके जीवन में नहीं आते। फ़रदू और नेकी मिल गए और फ़रदू का अब ख़ुद का सब्जी का ठेला भी हो गया था। धीरे—धीरे वक़्त यूं ही गुज़र रहा था लेकिन उसे नेकी के साथ अपनापन महसूस नहीं होता। क्योंकि नेकी हर वक़्त आकांक्षाओं की उड़ान भरती। वह दिनरात एक ही सपना देखती कि फ़रदू का सब्जी का ठेला खूब बड़ा हो जाए। पूरा शहर उसके ठेले से ही सब्ज़ियां खरीदें। नेकी की इस इच्छा को देखकर फ़रदू दु:खी होने लगा था। उसका मन अपने जमे जमाए ठेले पर नहीं लगता। वो चौबट्टा और वो नीम का पेड़ याद करता रहता। नेकी को इससे फ़र्क नहीं पड़ता। उल्टा वो चौबट्टे का नाम सुनकर उस पर झल्ला उठती। फ़रदू उदास रहने लगा था। आज उसके खल्या में पैसा बचने लगा था। अब रोज़ रात को नेकी ही उसके खल्ये के पैसे गिनती। लेकिन फ़रदू का मौजी जीवन उसे बार—बार चौबट्टे की तरफ बुलाता। आज जब फ़रदू का मन उसके नियंत्रण से बाहर हो गया तो वह सीधे चौबट्टे में चला आया। सबकुछ वही था…। वही नीम का पेड़ और वही उसके साथी…। लेकिन अब उसकी जगह बैठकर कांता सब्जी बेच रही थी। वह कांता के पास आता हैं और ज़मीन पर उसके पास ही बैठ जाता हैं। कांता उसे देखकर बहुत ख़ुश होती हैं। वह पूछती हैं तुम ख़ुश हो ना फ़रदू…? कांता की बात सुनकर फ़रदू की आंखें नम हो गई। वह क्या जवाब दें…। कांता कहती हैं तुमको यहां की याद आती होगी ना…। शायद इसीलिए तुम्हारी आंखें नम हैं। फ़रदू कहता हैं तुम मेरे बोलने से पहले ही कैसे मेरे मन को पढ़ लेती हो…? कांता हंसकर बात को टाल जाती हैं। लेकिन फ़रदू कहता हैं तुम्हें बताना ही होगा कि तुम मुझे इतने अच्छे से कैसे समझ पाती हो। कांता कुछ देर इधर—उधर की बातें करके टालती रहती हैं फिर जब फ़रदू दबाव बनाता हैं तब वह अपने दिल की बातें जुबां पर ले आती है। वो कहती हैं कि जब से तुम चौबट्टे में सब्ज़ी बेचने लगे थे तभी से मैं तुम्हें पसंद करती हूं। तुम्हारे हर सुख और दु:ख का अहसास हैं मुझे। लेकिन जब मुझे पता चला कि तुम और नेकी एक—दूजे से प्रेम करते हो तब मैं तुम्हें अपने दिल की बात नहीं कह सकी। और मन ही मन तुम्हारी खुशी को अपनी खुशी मानकर तुम दोनों के मिलने की दुआएं करती रही। ये सुनकर फ़रदू बेहद भावुक हो उठा। उसे यकीन ही नहीं हुआ कि प्रेम का ये रुप भी हो सकता है। वो कांता के सिर पर हाथ रखता हैं और ये कहकर चला जाता है कि कांता तुमने मेरे खल्ये में पैसा डालकर नेकी को तो मुझसे मिलवा दिया है। लेकिन अब से हमेेशा मेरे दिल में तुम्हारा ये नि:स्वार्थ प्रेम भी बसा रहेगा। फ़रदू के इन शब्दोें को सुनकर कांता की आंखें भर आई। उसके मन में फ़रदू के लिए प्रेम और भी बढ़ गया। लेकिन वो नेकी और फ़रदू के बीच किसी भी तरह का रोड़ा नहीं बनना चाहती थी। इसीलिए वो हमेशा के लिए चौबट्टा छोड़कर ऐसी जगह चली जाती हैं जहां पर कभी फ़रदू नहीं आ सके। जब फ़रदू अपने सब्ज़ी के ठेले पर पहुंचता हैं तो नेकी उस पर चिल्ला उठती हैं कहां गए थे तुम…कितनी ग्राहकी हैं…मैं अकेली ही इसे संभालते—संभालते थक गई। फ़रदू कुछ नहीं बोलता हैं चुपचाप ठेले को संभालने लगता है। नेकी उसकी उदासी को देखकर फिर भड़कती है। लेकिन इस बार वो उसे जवाब देता है। वो उसे कांता के बारे में सब कुछ बताता हैं। नेकी जो अब तक सिर्फ फ़रदू के खल्ये को पैसों से भरने का ही ख़्वाब सजाए बैठी थी अब वो ख़ुद से बेहद शर्मसार थी। वो फ़रदू से माफी मांगती हैं और अगले ही दिन उसके साथ कांता सेे मिलने के लिए चौबट्टा पहुंचती हैं। लेकिन आज यहां कांता नहीं थी…किसी को भी उसके बारे में पता नहीं था कि वो आख़िर कहां गई हैं। फ़रदू समझ गया था…अब कांता उसे कभी नहीं मिलेगी…वो हमेशा के लिए उसका कर्ज़दार रह गया। लेकिन जाते—जाते वो नेकी को असल प्रेम और उसे निभाने के मायने समझा गई थी। नेकी को अहसास हो गया था कि साथ रहना ही प्रेम नहीं होता…। खल्या—जेब टाट—सुतली से बना हुआ झोला चौबट्टा—चौराहा कहानियाँ – ‘झम्मक’ लड्डू ‘मां’ की भावनाओं का ‘टोटल इन्वेस्टमेंट’ 3 comments 0 FacebookTwitterPinterestEmail Teena Sharma Madhvi previous post ‘समानता’ का शोर क्यूं…? 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