कोनाप्रकाशित लेखप्रासंगिक टूट रही ‘सांसे’, बिक रही ‘आत्मा’ by Teena Sharma Madhvi May 4, 2021 written by Teena Sharma Madhvi May 4, 2021 देश कोरोना से ‘कराह’ रहा हैं। कोरोना की दूसरी लहर खतरनाक होती जा रही है। यह महामारी अब दिल दहलाने लगी हैं। भारत में इस कोरोना वायरस के संक्रमण से जान गंवाने वालों की संख्या थमने का नाम नहीं ले रही। बीते दस दिनों में ही भारत में 3 लाख से अधिक संक्रमित मामले दर्ज किए गए हैं। स्थिति यह हो गई है कि एक दिन में ही रेकार्ड 3,000 से भी ज्यादा लोगों की जानें जा रही है। संक्रमण के इन बढ़ते आंकड़ों के बीच अपनों को खोते जा रहे हैं लोग…। चारों ओर शमशान घाटों पर शवों की लंबी कतारें लगी हुई हैं…अपनों की एक—एक सांसे बचाने के लिए लोग इधर—उधर भाग रहे हैं…। कभी डॉक्टर्स तो कभी अधिकारियों व मंत्रियों के पैरों में गिर ऑक्सीजन सिलेंडर के लिए गिड़गिड़ा रहे हैं। इस बेबसी की ‘आह’ का शोर कानों को चीर रहा हैं। मजबूरी चीख रही हैं, बचा लो ‘साहब’…। लेकिन इन डरावनें हालातों के बीच ऐसे बदसूरत और घिनौने चेहरे भी सामने आ रहे हैं जो कहने को तो ‘ज़िंदा’ हैं लेकिन इनकी आत्मा मर चुकी हैं। इंसान के भेष में ये शैतानी लोग हैवानियत की सारे हदें पार कर रहे हैं। मरीज ऑक्सीजन के लिए तड़प रहे हैं और ऑक्सीजन सिलेंडरों की धड़ल्ले से कालाबाजारी हो रही हैं। ऐसी कई खबरें देश के अलग—अलग कोने से सामने आ रही हैं। लेकिन सवाल ये है कि इसकी नौबत ही क्यूं आई…? क्यूं तमाम सरकारों ने समय रहते जरुरी दवाओं और ऑक्सीजन प्लांट की व्यवस्था करने की ओर ध्यान नहीं दिया…? क्यूं समय रहते इन सेवाओं की निगरानी अपने हाथों में नहीं ली…? जब लोगों की सांसें फूलने लगी तभी क्यूं व्यवस्था जुटाने में हांफने लगी सरकारें…? अब जब हालात बेकाबू हुए तो इंसानियत के शैतानी चेहरे जाग गए और भूल बैठे इस नाजुक वक़्त को और आपदा में अवसर तलाश रहे हैं। कोरोना की इस जंग में इस वक़्त सबसे ज्यादा जिस दवाई की जरुरत महसूस की जा रही हैं वो हैं ‘रेमडेसिविर’। लेकिन इस इंजेक्शन की ‘कालाबाजारी’ से लाखों की कमाई की जा रही हैं। ये जुर्म तब और भी बड़ा लग रहा हैं जब इसे करने वाले ख़ुद डॉक्टर हो। हाल ही में गाजियाबाद में इस कालाबाजारी में एम्स के एक डॉक्टर का ये भयानक चेहरा सामने आया था जो अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर एक इंजेक्शन की कीमत 30 से 40 हजार रुपए तक वसूल रहा था। ऐसा ही एक ओर मामला मप्र के रतलाम जिले से आया था। जब एक निजी अस्पताल के डॉक्टर और कर्मचारी रेमडेसिविर की शीशीयों में नकली दवाई भरकर हजारों की कीमत में बेच रहे थे। हमारा अपना प्रदेश जो पिछले साल भीलवाड़ा मॉडल की ऩजीर पेश कर पूरे विश्व मानचित्र पर अपनी विजय का डंका बजवा रहा था वो भी कालाबाजारी के दाग मिटाने में फिसड्डी साबित हुआ। पिछले दिनों ऐसा ही एक मामला यहां भी सामने आया था। हद तो तब हो गई जब राजधानी के सभी ऑक्सीजन प्लांट पर सरकार के अधिकारियों की निगरानी होने के बावजूद ऑक्सीजन सिलेंडर चोरी हो गए। सवाल फिर भी यही हैं, आखिर क्यूं…? व्यवस्थाओं में ये सेंधमारी हुई कैसे…? इतना ही नहीं मरने के बाद भी अंतिम संस्कार के नाम पर मोक्षधाम में लोगों को डराकर कमाई का खेल चल रहा हैं। वो भी तब जबकि सरकार कोरोना की वजह से होने वाली मौत का नि:शुल्क अंतिम संस्कार करवा रही हैं। अब जबकि मोक्षधामों की सच्चाई उजागर हो रही हैं तो नगरनिगम और पुलिस को बिना देरी किए अवैध वसूली करने वालों पर सख्त कार्रवाई करनी चाहिए। ऐसे मामलों में एसओजी टीम की तारीफ की जा सकती हैं। जिसने डिकॉय ऑपरेशन चलाकर रेमडेसिविर इंजेक्शन की कालाबाजारी को उजागर किया और 50 हजार में इंजेक्शन बेचने वालों को गिरफ्त में ले लिया। ऐसी ही मुश्तैदी बाकियों को भी दिखानी होगी। साथ ही कोविड महामारी में कालाबाजारी करने वालों पर 7 वर्ष की सजा या आजीवन कारावास तक की सजा का जो प्रावधान हैं उसे सख्ती से अमल में लाने की आवश्यकता हैैं। कुछ मामलों में की गई सख्ती बाकियों में निश्चित ही इस कृत्य को न करने का सबक देगी। अपराधियों में इससे भय पैदा होगा। देश में इस वक़्त डॉक्टर किसी भगवान से कम नहीं हैं। ये डॉक्टर ही हैं जो इस संकटकाल में पिछले सवा साल से ‘इंसान’ और ‘इंसानियत’ को बचाने में लगे हुए हैं लेकिन इन देवदूतों के बीच से निकलकर जब शैतानी चेहरे सामने आ रहे हैं तब इन पर भरोसा करने वाला आम आदमी बेहद घबराया हुआ हैं। खुद एक्सपर्ट भी मान रहे हैं कि लोग अफवाहों और धोखाधड़ी से अधिक डर रहे हैं। सरकार को इस वक़्त अपना निगरानी तंत्र मजबूत करना चाहिए। वहीं एक आम नागरिक भी इस बात के लिए जिम्मेदार बनें, यदि ऐसी किसी कालाबाजारी की भनक मिलें तो फोरन पुलिस और प्रशासन के साथ साझा करें। जिससे कालाबाजारी करने वालों पर शिकंजा कसने में मदद मिलेगी। इसके साथ ही अफवाहों से डरें नहीं बल्कि सजगता से काम लें। ये वक़्त बेहद संभलकर चलने का हैं। इस वक़्त यदि सबसे बड़ी ‘संजीवनी’ हैं तो वो हैं भरोसा और हिम्मत। ये वक़्त हैं ‘एकजुटता’ का। ना कि लाशों की चिता पर राजनीति की रोटियां सेंकने का। मरने वाला किसी पार्टी, जाति, धर्म या पद से नहीं बल्कि इंसानी जमात से हैं। ये समय सकारात्मकता के साथ समझदारी दिखाने का हैं। आरोप—प्रत्यारोप तो फिर कभी किसी और मुद्दे पर लगा लेंगे फिलहाल इंसान की सांसों को बचाने का वक़्त हैं। बस बात इत्ती सी हैं। अन्य लेख— याद आई भारतीय परंपराएं.. वर्चुअल दुनिया में महिलाएं असुरक्षित संक्रमणकाल की वॉरियर जल संकट बन जाएगा महासंकट अन्नदाता की हांफती सांसों की कीमत क्या? 11 comments 0 FacebookTwitterPinterestEmail Teena Sharma Madhvi previous post ‘गुफ़्तगू’ हैं आज ‘दर्द’ से…. next post धागा—बटन Related Posts जन्माष्टमी पर बन रहे द्वापर जैसे चार संयोग August 24, 2024 देश की आज़ादी में संतों की भूमिका August 15, 2024 विनेश फोगाट ओलंपिक में अयोग्य घोषित August 7, 2024 मनु भाकर ने जीता कांस्य पदक July 28, 2024 रामचरित मानस यूनेस्को ‘मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड’ सूची... 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