आज जब अक्षांश ने अपनी मां मीता से ये सवाल पूछा कि मां मेरे सभी दोस्तों के भाई और बहन है लेकिन मैं अकेला क्यूं हूं? सवाल मासूमियत भरा था लेकिन इसका जवाब मीता की खामोशी के आंचल में छूप गया। उसने अक्षांश को बगैर इसका जवाब दिए हंसते हुए टाल दिया। और फिर बच्चे तो बच्चे ही होते हैं, वो भी मां की बातों में बहल गया और खेलने चला गया। लेकिन ढलती सांझ और डूबते सूरज की लालिमा ने मीता की खामोशी से एक सवाल किया। क्या वाकई अपने मासूम बच्चे के इस सवाल का उसके पास कोई जवाब नहीं था? या वह उसे इसका जवाब देना नहीं चाहती थी...।
मीता के मन की उथल—पुथल ने उसे वो लम्हा याद दिला दिया जब छह साल पहले अक्षांश होने वाला था। मई की तेज गर्मी और नौ माह का पेट लिए वह अपने पति के साथ शहर के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल पहुंची। लेकिन मेन गेट पर पति ने उसे छोड़कर गाड़ी पार्किंग में लगाकर आने को कहा। मीता उसकी राह देख रही थी पति को न आए हुए आधे घंटे से ज्यादा का वक़्त बीत चुका था इधर उसकी हालत बिगड़ रही थी।
भरी दोपहरी में कभी वह अपने माथे से टपक रहे पसीने को पोंछती तो कभी अपने पेट पर हाथ रखे हुए लंबी सांसे भरती। हिम्मत जुटाकर वह ख़ुद ही अस्पताल के भीतर चली गई। उसे कुछ भी पता नहीं था कि वह कहां पर जाएं और कैसे डॉक्टर से मिलें।
तभी एक नर्स की नज़र उस पर पड़ी और उसने मीता को एक बैंच पर बैठा दिया। और पूछा कि तुम्हारे साथ कौन आया है। मीता ने उसे बताया कि उसके साथ पति है, वो गाड़ी पार्क करने गए थे लेकिन उन्हें ज्यादा वक़्त लग गया। इसीलिए वो अकेली अस्पताल के भीतर आ गई। नर्स ने उसकी बात सुनकर कहा कि ठीक है आपके पति आ जाए तब आपका चैकअप करेंगे। और वह नर्स किसी और काम में व्यस्त हो गई।
तभी मीता की नज़र दूर से आते हुए अपने पति पर पड़ी। पीड़ा झेल रही मीता के चेहरे पर मुस्कान आ गई। लेकिन पति ने उसके पास आते ही चिल्लाना शुरु कर दिया। अरे तुम अंदर चली आई..मैं तुम्हें बाहर ढूंढ रहा था..इतनी भी क्या जल्दी थी कि मेरा इंतजार नहीं कर सकी..पंद्रह—बीस मिनट भी रुक नहीं सकी...।
दर्द झेल रही मीता ने एक ही शब्द कहा— जल्दी से डॉक्टर को दिखा दो। मीता का पति बड़ बड़ करते हुए डॉक्टर को बुलाने चला गया। थोड़ी देर बाद एक नर्स आई और मीता को कुछ ज़रुरी मेडिकल टेस्ट करवाने के लिए ले गई। मगर मीता की आंखे अब भी पति को ही ढूंढ रही थी। वह फिर उसकी आंखों से ओझल हो गया था।
नर्स ने टेस्ट कराने के बाद मीता को फिर उसी बैंच पर बैठा दिया। मीता देख रही थी कि टेस्ट के लिए भी उसे अकेले ही अंदर जाना पड़ा..वो दर्द से गुज़र रही थी ऐसे में उसे अपने पति के एक भावनात्मक सहारे की बेहद ज़रुरत थी।
नर्स फिर आई और मीता के हाथ में एक पर्ची देकर कुछ ज़रुरी दवाईयां मंगवाने को कहा। बेबस मीता क्या करें, सभी तरफ उसकी आंखें पति को ढूंढ रही थी। उसने एक बार फिर हिम्मत जुटाई और बैंच से उठकर धीरे—धीरे चलते हुए पति को ढूंढने के लिए निकली। तभी उसकी नज़र चाय की थड़ी पर आराम से चाय पी रहे पति पर पड़ी। मीता ने पति को आवाज़ लगाई।
पति की नज़र भी मीता से मिल गई लेकिन उसने मीता की इस बेबस स्थिति को बेहद हल्के में लिया। वह उसके पास आया और उससे बोला कि अब क्या है..क्या बोल रहे हैं डॉक्टर..। मीता के माथे से अब भी पसीना टपक रहा था। उसे अपने पति के सहयोग की इस वक़्त बेहद ज़रुरत थी। उसने पति से कहा कि बस कुछ ही देर बाद डॉक्टर ने डिलिवरी होने की बात कही है। आप ये कुछ ज़रुरी दवाएं ले आइये।
मीता का पति मुंह फुलाए हुए दवाएं लेने चला गया। मीता फिर उसी बैंच पर आकर बैठ गई। इसी बीच नर्स ने उससे आकर पूछा कि दवाएं आ गई। मीता ने कहा कि बस पति आ रहे दवाएं लेकर...।
अस्पताल में अब तक नर्स व डॉक्टर को ये बात समझ आ रही थी कि पति उसे इग्नौर करने की कोशिश कर रहा है वरना ऐसी हालत में भला वह उसे यूं छोड़कर इधर—उधर नहीं भटकता। डॉक्टर व नर्स के लिए ये कोई नई बात नहीं थी। उनके लिए ये अकसर होने वाली एक सामान्य घटना थी।
मीता की आंखें भी अपने आसपास बैठे लोगों और डॉक्टर्स के मन के भाव समझ रही थी। उसे खुद महसूस हो रहा था कि ये सभी लोग उसके पति के इस व्यवहार को भांप रहे है।
वह ये सब कुछ सोच रही थी तभी उसका पति दवाएं लेकर आ गया। उसने मीता को दवाईयां पकड़ा दी और फिर वहां से जाने लगा। तभी मीता ने उसे टोकते हुए कहा..रूक जाओ ,और उसका हाथ पकड़कर कहा कि मुझे इस समय तुम्हारे स्नेह और सहयोग की आवश्यकता है। शादी के बाद से लेकर अब तक तुमने यूं ही मुझे नजर अंदाज किया है। मगर आज नहीं....।
तभी पति अपना हाथ झटकते हुए चिल्लाया..और बोला कि तुम यही जानना चाहती हो ना कि क्यूं शादी के बाद से लेकर अब तक मैं तुम्हारी उपेक्षा करता रहा हूं...क्यूं तुम्हें अपने साथ ले जाने में परेज करता रहा...तो सुनो...।
असल में तुम मेरे लायक ही नहीं हो।
तुम थोड़ी बहुत भी शकल सूरत में ठीक होती तो शायद मुझे तुम्हारे साथ खड़े होने में घिन्न नहीं आती। तुम मेरी तुलना में बिल्कुल भी अच्छी नहीं दिखती हो..मैं चाहता हूं जल्द से जल्द डिलिवरी हो जाए और इस अस्पताल से छूटकारा मिलें..।
तुम्हारे साथ मैं ख़ुद को बड़ा शर्मिंदा महसूस करता हूं। जात समाज वालों को तो पता है कि तुम मेरी पत्नी हो लेकिन बाकी लोगों में मेरा इम्प्रेशन ख़राब हो ये मैं बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं कर सकता।
मीता ये सुनकर सन्न रह गई... लेकिन वो चुपचाप सुनती रही। तभी नर्स आई और उसे लेबर रुम में ले गई। भरी हुई आंखों से उसने पति को देखा लेकिन कुछ नहीं बोली। ये वक़्त एक औरत के लिए बेहद कठिन होता है। मीता दो तरफा दर्द को झेल रही थी एक तो लेबर पैन और दूसरी तरफ पति के कहे गए कड़वे शब्द। थोड़ी देर बाद मीता ने बेटे को जन्म दिया। ये सुनकर उसका पति बेहद खुश हुआ।
मीता सोच रही थी कि जिस आदमी को मेरे साथ दिखाई देने में शर्मिंदगी महसूस होती है। उसे मेरे ही बच्चे का पिता होने से कोई गुरेज़ नहीं। जब मैं उसे कभी पसंद ही नहीं थी तो फिर ये बच्चा उसकी गोद में कैसे है। रिश्ते तो दिल से बनते हैं और दिल से ही चला करते है। जो आडंबरी सोच के चौले से ख़ुद को ढके हुए है उसका ख़ुद का क्या अस्तित्व है। जिसने मेरे मन की सुंदरता और मेरे व्यक्तित्व की क़दर नहीं की....मैं क्यूं उसके लिए अपने को कमतर समझूं।
मीता ने इस पल ख़ुद को एक मजबूत औरत की तरह खड़ा किया और इस मखौल से दूर किया कि वो अपने पति की तुलना में सुंदर नहीं है। उसने अपने इसी चेहरे की सच्चाई के साथ ख़ुद को बेहद सुंदर पाया। ये ही वो वक़्त था जब उसने पति व परिवार के बाकी लोगों की परवाह किए बगैर आॅपरेशन भी करवा लिया। ताकि अब उसे दूसरा बच्चा ना हो।
ये उसका फैसला था। यही वो जवाब था जो एक ख़ामोशी बनकर उसके भीतर था जिसे अपने छह साल के मासूम बेटे के साथ वो कैसे साझा करती।
मीता ने तो अपने अस्तित्व की सुंदरता को परख लिया। लेकिन समाज में ऐसे ढेरो उदाहरण है जहां बाहरी सुंदरता को तवज्जो देकर लोग अपने भीतर का सुख चैन खोए बैठे है। रिश्तों की अहमियत उनके होने से ना कि दिखावे से...।