'कहानी का कोना' ब्लॉग में पढ़िए मेरा यानि टीना शर्मा 'माधवी' का लेख 'मर्दो का नहीं वीरों का हैं प्रदेश'...।गहलोत सरकार में यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल कुछ ऐसा कह गए जिससे राजस्थान की धरती शर्मशार हो गई...। ''राजस्थान मर्दो का प्रदेश है यार, क्या करें''...? ये शांति धारीवाल जी के बोल बचन हैं...। अब इन्हें कौन बताए कि, पहले यहां का इतिहास पढ़ लो मंत्रीजी...फिर बोलो ऐसे अपमानित कर देने वाले बोल...। दरअसल, हुआ यूं कि, शांति धारीवाल जी कह गए—
'' मर्दो का प्रदेश , क्या करें''...?
''राजस्थान मर्दो का प्रदेश है यार, क्या करें''...?
गहलोत सरकार में यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल ने विधानसभा में ये बयान देकर पूरे प्रदेश के मान—सम्मान और गौरवशाली इतिहास को कलंकित कर दिया हैं।
बहस के दौरान धारीवाल ने ये तो माना कि रेप के मामले में राजस्थान नंबर एक पर हैं...। लेकिन मर्दानगी को रेप से जोड़ने वाली उनकी समझ ने औरतों के प्रति क्या मानसिकता हैं इसे भी उजागर कर दिया हैं।
राजस्थान को 'मर्दो' का प्रदेश बताकर वे क्या साबित कर रहे हैं....? क्या राजस्थान रेप में एक नंबर पर है उसकी वजह यहां के पुरुष है...जिनके पास रेप करने की मर्दानगी हैं....?
या फिर मर्दानगी की सही परिभाषा ख़ुद मंत्री धारीवाल की समझ से परे हैं। उनका बयान न सिर्फ शर्मनाक हैं बल्कि पूरे प्रदेश के मान—सम्मान को ठेस पहुंचाने वाला भी हैं....।
हैरानी तो इस बात पर और अधिक है जब इस शर्मनाक बोल पर सदन में किसी भी नेता ने गहलोत सरकार के मंत्री धारीवाल को टोका नहीं बल्कि ख़ुद भी कई नेता इनके बोल पर हंस रहे हैं....।
'मर्द' तो वे भी नहीं हैं जो इतने बेशर्म बोल पर मजे ले रहे हैं...।
कम से कम सदन की गरिमा का ही ख़याल रख लिया होता....। इतना तो भान होता कि सदन में महिलाएं भी उपस्थिति हैं। इस हंसी ने सदन की गरिमा को कलंकित कर दिया ....।
इस वक़्त ज़ेहन में एक बात उठ रही हैं। कहीं मंत्री जी की 'मेमोरी' कम तो नहीं हो रही...? यदि ऐसा है तो फिलहाल इन दिनों 'काच्चा बादाम' का सीज़न चल रहा हैं।
बच्चे—बच्चे को ये पता चल गया कि 'काच्चा बादाम' खाने से 'मेमोरी' बढ़ती हैं...। तो ऐसे में मंत्री शांति धारीवाल जी को 'काच्चा बादाम' खाकर पहले अपनी 'मेमोरी' को दुरुस्त करने की ज़रुरत हैं...।
मंत्री शांति धारीवाल जी शायद ये भूल बैठे है कि ''राजस्थान 'शूरवीरों' का प्रदेश है...वीरों की धरती हैं''...। यहां के इतिहास में इसका एक अमर और अमिट उदाहरण हैं 'महाराणा प्रताप'।
जो इसी धरती पर जन्में है...जो एक ऐसे वीर योद्धा थे जिन्होंने अपने प्रदेश का मान झूकने न दिया...वहीं दूसरे शूरवीर जयमाल राठौड़ थे जो पैर से जख्मी होने की वजह से कल्ला जी के कंधे पर बैठ कर युद्ध लड़े थे...।
सलूम्बर के नवविवाहित रावत रतन सिंह चुण्डावत अपनी पत्नी का कटा शीश गले में लटकाए मुग़ल सेना के साथ डटकर लड़े, पर पीठ न दिखाई....ये है मर्दानगी...।

मंत्री शांति धारीवाल
वीरता, त्याग एवं राष्ट्रप्रेम जैसे गुणों वाले ये योद्धा ही थे जिनके लिए 'मर्दानगी' के मायने महिलाओं की रक्षा करना और मातृ—भूमि के लिए सिर कटवा देना था मगर झूकना नहीं ...
और धारीवाल जी हैं कि इस पवित्र भूमि को मर्दो का प्रदेश कहकर इसे यूं लज्जित कर रहे हैं।
इसी धरती पर रानी 'पद्मिनी' का जौहर भी पूजा जाता हैं तो मीरा की भक्ति के सुर भी गूंजते हैं...।
'हाड़ी' रानी के सिर से टपके लहू के निशां भी इसी धरती पर गिरे हैं जो आज भी धर्म पालन की याद दिलाते हैं...।
लेकिन मंत्री शांति धारीवाल जी को ये सब कहां याद हैं...। बेशर्मी इतनी कि, अपने ही बयान पर हंस भी रहे हैं...।
क्या कहें इसे....? क्या इससे ये समझ लेना भर काफी नहीं कि औरतों के प्रति मंत्री जी की सोच और नज़रियां क्या हैं....।
मंत्री जी के हिसाब से मर्दानगी 'रेप' करने में हैं शायद...? ऐसा लगता हैं इनकी परवरिश और शिक्षा में ही कोई कमी रह गई जो बिना सोच—विचारें और यूं ही हंसी ठट्ठा में इतनी बड़ी बात कह गए....।
मंत्री जी आपने मर्दो की जो ये नई परिभाषा गढ़ी हैं वो आपके मानसिक 'दिवालियापन' की ओर इशारा करती हैं...।
बेहतर होगा, ज़रा एक बार ठहर कर सोचिएगा...क्या वाकई में आपने 'मर्द' नहीं 'मर्ज़' कहा था...? तब अपने ही इन बोलों पर 'मर्द' की जगह 'मर्ज' शब्द रखकर दोहराइएगा....शायद 'लीपापोती' की जगह अपनी गलती पर शर्मिंदगी महसूस हो ....।
टीना शर्मा 'माधवी'
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