सपनों की देह पर सुलग रही है
तमाम उम्र की ख़्वाहिशें
इक पल की ख़ुशी की ख़ातिर
न जानें कितनी रातें गुज़ारी हैं करवटों में..।
आज ज़रा हथेली क्या देख ली
ख़ुद की ‘लकीरें’ ही मिट गई…।
उफ! ये ख़्वाहिशें और इसे पा लेने की चाहतें,
न जानें क्या—क्या ‘लूट’ गया पीछे।
‘चैन ओ सुकून’ का उठना—बैठना
तसल्ली का घूंट और वो निवाला
बेफिक्र नीेंदें
वो अपनेपन की थप्पी
और वो हंसी ठट्ठे का शोर…।
सपनों की देह पर अब सुलग रही हैं सिर्फ ‘आह’
आज सोचा है यूं कि
बस और नहीं,
अब और नहीं…।
10 comments
Beautifully expressed feelings
Kumar Pawan
भावनाओं की अभिव्यक्ति का शानदार प्रदर्शन…
बेहतरीन भावाभिव्यक्ति
Thankyou
Thankyou shail
Thankyou dear
Ek no
[…] सपनों की देह पर….. […]
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