आज महिला समानता दिवस है.... क्यूं हम एक स्वर में इस दिन चिल्लाने लगते हैं कि महिलाओं को 'समानता दो'..'समानता दो'...। क्यूं ये एक शब्द इस दिन मुखर हो उठता है।
एक औरत को समानता देने की शुरुआत तो घर ही से होगी। फिर समाज और फिर देश तक समानता का शोर हो...।
जरा सोचकर देखिए क्या हम अपने घर की औरतों को मन से कुछ करने की आज़ादी देते हैं? क्या वो भी हमारी तरह सब कुछ मन का कर पाती हैं? नहीं...। सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक वो सिर्फ घर और परिवार का ही सोचकर रह जाती है।
रोज़ाना वह ख़ुद अपने मन की आज़ादी के साथ संघर्ष करती है। जो ख़ुद अपने सोच पाने का संघर्ष कर रही हो वो बाहर के लिए कब सोच सकेगी।
एक आम औरत घर की चार दीवारी के अंदर रहकर रोज़ाना ही अपनी सोच और सपने को मारने के लिए संघर्ष कर रही होती है। वह उसी माहौल में जी रही होती हैं जो हमारे घर, परिवार और समाज ने उसे दिया है।
उसका मन करता हैं कि वह आज कोई काम नहीं करें बस दिनभर टीवी देखें..उसका मन करता हैं आज उसे भी कोई थाली हाथ में पकड़ाकर कहें कि तुम्हारी पसंद का खाना हैं..कोई तो हो जो उसके सिर पर हाथ रखकर कहें कि तुम चिंता मत करो...। क्या वाकई ये माहौल उसे मिलता हैं या फिर उसे ये सब दे पाते है...नहीं...।
फिर चाहे राजनीति में महिलाओं को शामिल करने की बात हो या फिर सरकारी सेवा में उन्हें आरक्षण देने जैसा मुद्दा हो। ऐसे तमाम विषयों पर बात करना तो व्यर्थ ही होगा।
ये बात जितनी सरल हैं उतना ही इसका गहरा अर्थ हैं। घर के भीतर ही हर रोज जो औरत मन का करने का संघर्ष कर रही हैं वो क्या बाहर आकर समानता की उम्मीद रख सकेगी।
माना कि आज हम बहुत आगे बढ़ रहे हैं। सबकुछ डिजिटल हो चला है। लेकिन इस युग में भी हम उसी एक विषय पर बात करते आ रहे हैं जो सदियों से चला आ रहा है 'स्त्री समानता'।
इस दिन की सार्थकता माहौल और अपनी सोच
को बदलकर कीजिए..। यकीनन घर, समाज और देश में यूं स्त्री की समानता का शोर न उठेगा।