कहानियाँ कबिलाई एक ‘प्रेम—कथा’… भाग—5 by Teena Sharma Madhvi October 14, 2021 written by Teena Sharma Madhvi October 14, 2021 आज बरसों बाद मौसम ने घना काला चौला ओढ़े हुए अपनी बाहों में बारिश को भर लिया था जैसे….हर गर्ज़ना पर उसकी आह सुनाई दे रही मानो…। शंकरी ने तंबू से बाहर झांककर देखा तो शाह अंधेरा मंडराया हुआ था…और तभी बादल फट पड़े और तेज बारिश होने लगी। शंकरी कांप उठी और भीतर आकर अपने बिछौने में सिमटकर बैठ गई। उसका दिल जोरों से धड़कनें लगा…आंखों में बीती यादें तैर उठी…बारिश की धार ने उसके दिल को छलनी कर दिया…वह समझ गई…इस बारिश का वेग भी उतना ही तीव्र है जितना कि उस रात में था। एक बार फिर शंकरी के ख़याल में वो रात जाग उठी…उस तूफानी रात के आग़ोश में सोहन की यादें करवटें लेने लगी। और उसे ये महसूस होने लगा मानों सोहन यहीं कहीं हैं…उसके आसपास…। मगर अपने अहसासों को किससे बांटे… अपनी तड़प को किससे बयां करें…। यहां कौन हैं जो उसके भीतर की आग को महसूस कर सके…। ये बारिश की बूंदें ही हैं जो उसकी तपन को कुछ ठंडक दे रही हैं…वह कभी अपने तंबू से बाहर जाती और ख़ुद को इन बूंदों से भीगो आती…और फिर उन्हीं बूंदों को अपने आंचल से पोंछ लेती। लेकिन बूंदों के होने का अहसास उसके चेहरे पर बना रहता…। बूंदों के साथ ख़ुद को बांट लिया था शंकरी ने। इसी में पूरी रात कब कट गई उसे ज़रा भी पता नहीं चला। अगली सुबह बारिश बंद थी लेकिन अब भी बादलों का घना कालापन बाकी था…। जिसे देखकर शंकरी का दिल अब भी कह रहा था, जैसे सोहन बाबू यहीं कहीं हैं…। उसकी नज़रें इधर—उधर सोहन को ही ढूंढने लगी और कानों में सोहन की आवाज़ फुसफुसियाने लगी…। शंकरी कभी टिबड्डे की ओर दौड़ती तो कभी तंबूओं में झांककर देखती…। हर जगह उसे निराशा ही मिली लेकिन सोहन कहीं न था…भले ही उसकी आंखें सच बता रही थी लेकिन उसका दिल ये मानने को ही तैयार न था कि सोहन यहां नहीं हैं….। कबिलाईयों ने बरसों बाद उसे यूं बस्ती में फुदकते हुए देखा था…उसके चेहरे पर तेर रहे खुशी के भाव सभी को नज़र आने लगे। भीखू सरदार जो अब बुढ़ा हो चला था, उसके घुटनों में इतनी जान तो नहीं थी, कि वो तेज क़दमों से चलकर शंकरी के पास आ जाए, लेकिन उसके भीतर की जिज्ञासा बहुत तेज भागने लगी। वह गहरी सोच में पड़ गया। आख़िर शंकरी को आज हुआ क्या हैं…? क्यूं वो बस्ती में इधर—उधर भटक रही हैं…? उसने अपनी शंका दूर करने के लिए फोरन अपने भाई को बुलाया और शंकरी की इस हालत का जायज़ा ले आने को कहा। सरदार का भाई बिना देरी किए हुए शंकरी के आसपास मंडराने लगा…वह पूरा मांजरा समझना चाहता था इसीलिए उसने शंकरी पर यूं नज़रें रखी जैसे शंकरी को कुछ पता ही न चले। और हुआ भी कुछ ऐसा ही। शंकरी को अपने आसपास होने वाली चहलपहल का अहसास भर न था…वह ख़ुद की ‘धुन’ में सवार थी…। ‘राग’ भी उसका और ‘गीत’ भी उसका…। कुछ देर तक तो सरदार का भाई उस पर नज़रें गढ़ाए रहा जब उसका सब्र टूटने लगा तब वो शंकरी के पास आकर बोला— ‘क्या बात हैं शंकरी…बरसों बाद तेरा खिला हुआ चेहरा दिख रहा है…कोई खास बात हैं क्या आज’…। ये सुनते ही शंकरी ने अपने अहसासों पर नियंत्रण पाया और ख़ुद को संभालते हुए बोली ‘कुछ भी तो नहीं है’….ऐसा क्यूं लग रहा हैं आपको…? हां, बरसों बाद बारिश का तीव्र वेग देख रही हूं बस…। कुछ यादें हैं जो इस वेग के साथ मुझे मेरा अतीत याद दिला रही हैं…। ये कहकर शंकरी वहां से निकल गई और मन ही मन सोचने लगी कि सरदार के भाई को उस पर कुछ संदेह हो चला हैं…। इसलिए उसे अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखना ही होगा…। शंकरी की बात सुनने के बाद भी सरदार के भाई का संदेह उस पर से नहीं मीटा। उसे शंकरी के हाव—भाव परेशान करने लगे। उसने फोरन भीखू सरदार को सारी बातें बताई। सरदार अपने भाई की बात सुनने के बाद चौकन्ना हो गया और उसने भाई से कहा कि, गुपचुप रुप से बस्ती के आसपास और जंगल की सीमा पर अपने आदमियों की तैनाती करवाओ। निश्चित ही कोई बात हैं, वरना शंकरी यूं न खुश दिखती…। कहीं…सोहन तो नहीं हैं आसपास…। तभी सरदार का भाई बोल उठा, अरे! न..न..ये कैसे हो सकता हैं। शंकरी तो पिछले नौ साल से बस्ती के बाहर कभी—भी अकेली नहीं निकली…। भला ऐसा कैसे हो सकता हैं कि दोबारा सोहन उससे मिला हो…? तभी भीखू सरदार गुस्से से ज़मीन पर लाठी पटकते हुए बोला— क्या तुम भूल गए हो वो मनहुस दिन, जब सोहन ने हम कबिलाईयों की नाक के नीचे ही हमारी इज्जत उछाली थी…क्या तुम ये भी भूल गए हो कि तुम्हारी आंखों में धूल झोंककर सोहन भाग निकला था…? सरदार की बात सुनते ही उसके भाई का खून खोल उठा…उसने अपनी मूंछों पर ताव देते हुए कहा, कबिलाईयों को आज तक न कोई छल सका हैं और ना ही उनकी तरफ आंख उठाकर देखने की किसी ने हिम्मत दिखाई हैं….। सरदार मैं एक भी बात नहीं भूला हूं। नौ बरस से सोहन की तलाश में हूं…। जिस दिन वो मेरे हत्थे चढ़ गया समझो उसी वक़्त उसकी जान निकालकर बस्ती के टिबड्डे पर रख दूंगा….। तुम निश्चिंत रहो…शंकरी की खुशी का राज़ यदि सोहन ही है तो समझो अबके वो यहां से न भाग सकेगा….। तभी बस्ती के बाहर जोरों का शोर सुनाई पड़ा…भीखू सरदार और उसका भाई बस्ती के बाहर की ओर तेजी से बढ़े…जब दोनों बाहर पहुंचे तो भौंचक्के रह गए… क्रमश: कबिलाई एक ‘प्रेम—कथा’… भाग—4 कबिलाई एक ‘प्रेम—कथा’… भाग—3 कबिलाई एक ‘प्रेम—कथा’… भाग—2 कबिलाई एक ‘प्रेम—कथा’… भाग—1 3 comments 0 FacebookTwitterPinterestEmail Teena Sharma Madhvi previous post ‘विश्व हृदय दिवस’ next post कबिलाई एक ‘प्रेम—कथा’…भाग— 6 Related Posts छत्तीसगढ़ का भांचा राम August 29, 2024 विनेश फोगाट ओलंपिक में अयोग्य घोषित August 7, 2024 वैदेही माध्यमिक विद्यालय May 10, 2024 राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा January 29, 2024 राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा January 22, 2024 राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा January 21, 2024 समर्पण October 28, 2023 विंड चाइम्स September 18, 2023 रक्षाबंधन: दिल के रिश्ते ही हैं सच्चे रिश्ते August 30, 2023 गाथा: श्री घुश्मेश्वर महादेव August 13, 2023 3 comments Dev January 23, 2022 - 12:02 pm Test Reply Mahi Singh April 11, 2022 - 9:17 am Nice n touchy story Reply teenasharma April 27, 2022 - 1:37 pm thankyu mahi ji Reply Leave a Comment Cancel Reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.