प्रकाशित लेख ‘जल’ संकट बन जाएगा ‘महासंकट’ by Teena Sharma Madhvi June 4, 2020 written by Teena Sharma Madhvi June 4, 2020 वर्तमान मेें जिस तरह से कोरोना वायरस का खौफ पूरे विश्व पटल पर छाया हुआ है और हालात यह हो गए है कि उसे वैश्विक महामारी तक घोषित कर दी गई है। ठीक उसी तरह से भूजल की स्थिति भी भयावह होने वाली हैं। वहीं हमारे प्रदेश के भूजल की तस्वीर देखें तो सिहरन पैदा हो जाती है। आज विश्व ‘जल’ दिवस है और ये दिन पूरी तरह से पानी और इसके संरक्षण के महत्व पर केंद्रित है। हर साल इस दिन पूरे विश्व भर में पानी से संबंधित मुद्दों पर चर्चा की जाती है। पानी के बारे में अधिक जानने और पानी के संकट को दूर करने व सुधार लाने के लिए दुनिया भर के लोगों को प्रेरित किया जाता है। इन तमाम प्रयासों के बाद जब भू-वैज्ञानिक लगातर घट रहे जल स्तर की बात करते हैं तो ये वाकई एक बड़ी चिंता का विषय है। हाल ही में भू-वैज्ञानिकों ने जल संकट को महासंकट बताया है। वैज्ञानिकों के अनुसार 2050 में जल संकट सबसे बड़ा संकट होगा। अभी अफ्रीकी और एशियाई देशों में पांच में से एक व्यक्ति पानी के लिए जूझ रहा है। वहीं 2050 में साढ़े पांच अरब लोग पानी के संकट से जूझ रहे होगे। यूएनओ ने भी माना कि 2025 तक पानी एक महासंकट होने जा रहा है। इसलिए वह पूरी दुनिया को इस समस्या की तरफ ध्यान आकर्षित कर सचेत कर रहा है। राजस्थान में एक कहावत प्रचलित है जिसे रेगिस्तानी इलाकें में रहने वाला बच्चा भी बखूबी समझता है। यहां के लोग कहते हैं कि ‘घी ढुल्या म्हारा की नीं जासी। पानी डुल्याँ म्हारो जी बले’ इस कहावत से एक बात बिल्कुल स्पष्ट है कि यहां के लोगों में घी से अधिक कीमत पानी की है। प्रदेश के जैसलमेर और अन्य रेगिस्तानी इलाकों में पानी आदमी की जान से भी ज़्यादा कीमती है। पीने का पानी इन इलाकों में बड़ी कठिनाई से मिलता है। कई—कई किलोमीटर चल कर इन प्रदेशों की महिलाएं पीने का पानी लाती हैं। इनकी ज़िंदगी का एक अहम समय पानी की जद्दोजहद में ही बीत जाता है। परंपरागत तरीकों से स्थानीय लोगों ने अपने क्षेत्र के अनुरूप जल भण्डारण के विभिन्न ढाँचे बनाए हुए है। जैसे. नाड़ी, तालाब, जोहड़, बन्धा, सागर, समंद एवं सरोवर, कुएँ, बावड़ी या झालरा प्रमुख है। जबकि राजधानी जयपुर की ही बात करें तो हर साल गर्मी के दिनों में चारदीवारी क्षेत्र के लोग पानी के संकट से परेशान रहते हैं। चारदीवारी इलाके में रहने वाले लोग विभाग द्वारा भेजे गए टैंकरों पर निर्भर होते है। प्रदेश का ४९ प्रतिशत हिस्सा जल समस्या से जूझ रहा है। इतना ही नहीं राजस्थान की 3 हजार 321 बस्तियों के लोग अब भी फ्लोराइड युक्त पानी पीने को मजबूर है। ये समस्या खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही है। भूजल को लेकर राजस्थान का परिदृश्य क्षेत्रफल-३,४२,२३९ स्क्वॉयर किमीसामान्य वार्षिक वर्षा-५४९ एमएमभूजल स्तर मई, अगस्त, नवंबर-२०१७ और जनवरी २०१८ में भूजल स्तर मापन के दौरान, ६० प्रतिशत अधिक केंद्रों में भूजल की गहराई २० मीटर से कम थी। ( आंकड़े-केंद्रीय भूजल बोर्ड)भूजल स्तर मीटर में (भू सतह से नीचे) (निगरानी कुएं प्रतिशत में) जनवरी २०१८——————————————————–४० मीटर से अधिक १९.८६२० से ४० मीटर १७.४७१० से २० मीटर १९.२६०५ से १० मीटर २२.०६०२ से ०५ मीटर १६.६७०२ से कम ०४.६९ राजस्थान में ब्लॉकों की स्थितिवर्ष ब्लॉक सुरक्षित सेमी क्रिटिकल क्रिटिकल अतिशोधित १९८४ २३७ २०३ १० ११ १२१९८८ २३७ १२२ ४२ १८ ४४१९९० २३७ १४८ ३१ १३ ४४१९९२ २३७ १४९ १९ १५ ५३१९९५ २३७ १२७ ३५ १४ ६०१९९८ २३७ १३५ ४४ २६ ४१२००१ २३७ ४९ २१ ८० ८६२००४ २३७ ३२ १४ ५० १४०२००७ २३७ ३१ १३ ३९ १५३२००९ २३९ ३२ १४ ५० १४४२०११ २४३ २६ १९ २४ १७२२०१३ २४८ ४४ २८ ०९ १६४ (नोट-२०१४ से लेकर २०१७ की रिपोर्ट अभी लंबित है) बारिश में कोई कमी नहीं आई— अगर हम अपने राज्य में पिछले सालों में हुई बारिश का आंकलन करे तो पाएंगे कि इसमें कोई कमी नहीं आई है। विभाग के आंकड़ों की मानें तो १९०० से १९५० में हुई औसत बारिश से ज्यादा १९५१ से लेकर २००० तक हुई है। फैक्ट फाइल–देश की स्थिति ७३ फीसदी आबादी को साफ पानी नहीं मिलता है। हर साल ५ से कम उम्र के ५० हजार से डेढ़ लाख बच्चों की मौत का कारण दूषित पानी है। देश के ३२३११ गांव फ्लोराइड युक्त है। ४००० गांव आर्सेनिक, नाइटे्रेट और लैड जैसे घातक रसायनों से युक्त पानी पीने को मजबूर है। भूजल स्तर गिरने के मुख्य कारण— जनसंख्या वृद्धिकृषि क्षेत्र में जबरदस्त मांगशहरीकरण उद्योग अतिदोहन जल्द ही देश के ६० फीसदी जलस्त्रोत सूख जाएंगे— विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन और बेतहाशा पानी के दोहन के चलते बहुत जल्द देशभर के ६० फीसदी वर्तमान जलस्त्रोत सूख जाएंगे। खेती तो दूर की कौड़ी रही, प्यास बुझाने का पानी होना नसीब की बात होगी। 30 फीसदी लोगों को जरुरतभर पानी भी नहीं मिलता— यदि भारत की स्थिति पर गौर करें तो प्रत्येक व्यक्ति को रोजाना कम से कम 85 लीटर पानी उपलब्ध होना चाहिए। लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद भी 30 फीसदी लोगों को उनकी जरुरत पूरी हो सके इतना पानी भी नसीब नहीं हो रहा है। इसके पीछे एक बड़ी वजह औद्योगीकरण और अन्य मानवीय गतिविधियां भी है जिसने पानी को प्रदूषित कर दिया है। तो होगा गंभीर जल संकट— संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी देते हुए कहा था कि पानी की बर्बादी को अगर जल्द ही नहीं रोका गया, तो वह दिन दूर नहीं जब विश्व गंभीर जल संकट का सामना करेगा। नीति आयोग ने ‘जल प्रबंधन सूचकांकÓ जारी किया। इसके अनुसार भारत अब तक के सबसे बड़े जल संकट से जूझ रहा है। रिपोर्ट में बताया गया कि देश के करीब 60 करोड़ लोग जल संकट का सामना कर रहे हैं। करीब 75 प्रतिशत घर ऐसे हैं जहां पीने योग्य पानी तक उपलब्ध नहीं है। आने वाले कुछ वर्षों में देश के कई इलाकों में बार-बार सूखा पड़ेगा। इसके अलावा वर्ष 2030 तक देश में पानी की मांग भी दोगुनी हो जाएगी। रिपोर्ट के मुताबिक जल संकट से वर्ष 2050 तक देश की जीडीपी में छह फीसदी का नुकसान होगा। गुजरात सबसे आगे, राज्य का दसवां स्थान— जल संसाधन प्रबंधन में गुजरात सबसे आगे है, जबकि मध्यप्रदेश दूसरे स्थान पर है। राजस्थान इस दृष्टि से दसवें नंबर पर है। देश की आबादी को देखते हुए एक दशक यानी 2030 से पहले तक भारत जल संकट ग्रस्त की श्रेणी में आ जाएगा। ‘वल्र्ड इकोनॉमिक फोरमÓ की रिपोर्ट के अनुसार जल संकट को दस अहम खतरों में सबसे ऊपर रखा गया है। कुओं का जलस्तर २०० फीसदी— वर्ष १951 में प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 5,177 घन मीटर थी, जिसके वर्ष 2025 तक घटकर 1,341 घन मीटर ही रह जाने का अनुमान है। कुंओं में जहां जल 15 से 20 फीट पर उपलब्ध था, वहां जल स्तर 200 फीसदी से भी नीचे जा चुका है। वहीं देश की 275 नदियों में पानी तेजी से खत्म हो रहा है। जल आयोग की ही रिपोर्ट के मुताबिक 91 प्रमुख जलाशयों में गर्मी आने तक औसतन मात्र 20-22 फीसदी पानी बचा रहता है। 2016 में नौ राज्यों के 33 करोड़ लोगों ने भीषण जल संकट को झेला था। राजस्थान के साथ ही पंजाब और हिमाचल प्रदेश के जलाशयों में भी पानी का स्तर लगातार घटता जा रहा है। ‘ग्लोबल वॉर्मिंग’ सुखाएगा जल स्त्रोत— इंटरनेशनल हाइड्रोलॉजिकल प्रोग्राम पर नजर डाले तो ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण अगले दस साल में वाष्पीकरण की गति तेज होगी जो आज की तुलना में दोगुनी हो जाएगी। इसकी वजह से नदियों, तालाबों व अन्य जल स्त्रोतों का स्तर कम हो जाएगा। रिचार्ज से कई गुना ज्यादा दोहन— हमारे प्रदेश में पहले ही पानी की कमी है। जल का अतिदोहन इसका मुख्य कारण है। पिछले चार दशकों में धरती से जितना पानी निकाला है, उसके अनुपात में भूजल रिचार्ज नहीं हुआ है। अतिदोहन से धरती की कोख खाली हो गई है। कुएंं, तालाब, जोहड़, नाड़ी के साथ-साथ नलकूप भी सूखे पड़े हैं। भूजल प्रदूषित होने से खारा हो रहा है। पानी की उपलब्धता— १९५१ में प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता ५,१७७ घन मीटर थी, जिसके २०२५ तक घटकर १३४१ घन मीटर रह जाने का अनुमान है। एक नजर दुनिया पर— दक्षिण अफ्रीका की राजधानी केपटाउन में आपूर्ति के लिए पानी ही नहीं बचा है। मतलब 40 लाख लोग जल संकट की चपेट में हैं। अब प्रति व्यक्ति मात्र 25 लीटर पानी देना ही संभव हो पा रहा है और वितरण के लिए सेना और पुलिस को तैयार किया जा रहा है। दुनिया में 1.1 अरब आबादी को आज भी साफ पानी उपलब्ध नहीं है। 2.7 अरब लोगों को साल में कम से कम एक महीना पानी की कमी से जूझना पड़ता है। इतना तय है कि 2025 तक दुनिया की दो-तिहाई आबादी जल संकट का सामना करने को मजबूर होगी। ————————एक्सपर्ट कमेंट— —हमारे प्रदेश में पिछले कई दशकों से बारिश की स्थिति औसत बराबर बनी हुई हैं, लेकिन लगातार हो रहे भूजल दोहन की वजह से पानी का संकट बढ़ गया हैं। चूंकि पानी का रिचार्ज ही पानी का बचत हैं। ना सिर्फ सरकार बल्कि जनता को भी इस विषय पर गंभीरता से सोचना होगा और वाटर हार्वेस्टिंग जैसे अन्य भूजल रिचार्ज के उपाय सोचने होंगे। एस.एम.तंवररिटायर्ड चीफ इंजीनियर भूजल विभाग जल एनालिसिसक— पृथ्वी का 70 फीसदी से अधिक भाग पानी से ढका हुआ है, लेकिन मीठे जल की मात्रा काफी कम है। इसमें से 97.3 प्रतिशत पानी समुद्र में है, जो खारा है। शेष 2.7 फीसदी मीठा जल है। इसका 75.2 फीसदी भाग ध्रुवीय क्षेत्रों में तथा 22.6 फीसदी भूमि जल के रूप में है। इस जल का शेष भाग झीलों, नदियों, कुओं, वायुमंडल में नमी के रूप में तथा हरे पेड़-पौधों में उपस्थित होता है। इनमें से उपयोग में आने वाला जल का हिस्सा थोड़ा है। जो नदियों, झीलों और भूमि जल के रूप में मौजूद होता है।एक नजर इस दिवस की महत्ता पर भी— संयुक्त राष्ट्र संघ ने 1993 में एक सामान्य सभा के माध्यम से इस दिन को एक वार्षिक कार्यक्रम के रुप में मनाने का निर्णय लिया था। तभी से हर वर्ष 22 मार्च को विश्व जल दिवस के रुप में मनाया जाने लगा। इसे पहली बार ब्राजील के रियो डी जेनेरियो में 1992 में पर्यावरण और विकास के लिए संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन की अनुसूची में आधिकारिक रुप से जोड़ा गया था और इस तरह यह 1993 से सभी जगह मनाया जाने लगा। 2 comments 0 FacebookTwitterPinterestEmail Teena Sharma Madhvi previous post याद आई भारतीय परंपराएं next post एक मुस्कुराता चेहरा ‘सुशांत’… Related Posts बजता रहे ‘भोंपू’…. 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